एक पत्थर मैं उठाऊं, एक पत्थर तू उठा,
तोड़ देँ अपनी ज़मीनें, बाँट लें अपना खुदा ।
हक़ जमालें पत्थरों पर, कर लें सबकुछ मुट्ठी में,
कैद कर जग की खुदाई, बनलें हम खुद ही खुदा ।
कैसे कैसे लोग कैसे, खून के प्यासे बने,
करते कत्ल ए आम और, बदनाम करते हैं खुदा ।
होके सबसे हताश मैंने, ये सयाही पलटी है,
होके यूँ अनजान जाने, तू कहाँ बैठा खुदा ।
या फिर एक पत्थर मैं उठाऊँ…