Ae Khwab – ऐ ख़्वाब – hindi poem – gazal – rahulrahi

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शब ए फ़ुर्सत में तू आना, ऐ ख़्वाब,
दिन में तेरा नहीं काम, ज़माना नहीं।

हो ना जाएँ कहीं रंग ये, तेरे खराब,
रात के सिवा, तेरा कोई, ठिकाना नहीं।

तेरा फन, तेरा हुनर, लाजवाब,
पर किसी को, ये अज़ाब, बताना नहीं।

कोई खेलेगा तुझसे, कोई झेलेगा तुझको,
कर तू बात, यहाँ दिल, लगाना नहीं। 

कहूँ दिल से एक हिदायत है जनाब,
जागते रहना किसीको जगाना नहीं। 

कोई वीणा या बजाओ कोई रबाब,
अब अकेले खुद से यूँ शर्माना नहीं। 
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