Ek zamane ke baad – एक ज़माने के बाद – Gazal – rahulrahi

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किस्सों की जब तह खुली, तेरे ज़िक्र के बाद,
इत्र सा महका लम्हा, एक ज़माने के बाद ।
होश खोया सच को पाया, सब गया सा हुआ,
फ़िक्र गायब मन आज़ाद, मेरे जाने के बाद ।
घूमते फिरे पर्वत पर्वत, मिला ना कोई निशाँ,
आसमाँ गिरा पैरों तले, मिट्टी खाने के बाद ।
हवाएँ भी जब तन को लगे, बोझ बरसों का,
लीपो तेल सरसों का, ज़रा नहाने के बाद ।
अब ज़रा कम होने लगी है चोर की अय्यारी,
खाई रोटी मेहनत की, मस्जिद में जाने के बाद ।
जैसे जैसे दिन गुज़रे, रात हुई, बरसों निकले,
पता चला सब ज़ाया है, सिक्के हथियाने के बाद ।
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