मैं सुबह लगभग पौने दस बजे अपने घर से निकल पड़ा रिक्शा स्टैंड की तरफ। आप सोच रहे होंगे कि शायद मुझे कहीं जाना होगा इसलिए मैं रिक्शा स्टैंड पर गया, वहाँ से रिक्शा पकड़ी और कहीं का कहीं निकल गया। जी नहीं मैं वहाँ गया तो सही लेकिन वहाँ उपस्थित रिक्शाचालकों से मिलने के लिए। लेकिन आख़िर क्यों?? अजी उन्हें धन्यवाद देने के लिए। धन्यवाद?? जी हाँ धन्यवाद। यह धन्यवाद भी इसीलिए कि वह हमारे यातायात की धारा का एक मुख्य हिस्सा हैं, और हमें बड़ी ही तेजी से और कम समय में एक जगह से दूसरी जगह सुरक्षित पहुँचाते हैं। और यह रिक्शा चालक भारत के हर शहर और गाँव में होते हैं।
शिकायतों का दौर बहुत आम है, लेकिन समस्याओं के हल के लिए भी कुछ क़दम उठाने ज़रूरी हैं, और ऐसे ही कुछ प्रयोग हम प्रेम के साथ कर रहे हैं।
लेकिन मेरी इन बातों से मेरे कुछ मित्र और बाकी कुछ लोग तपाक से मुझसे एक सवाल कर बैठते हैं – भला इन रिक्शा वालों को धन्यवाद क्यों देना, यह तो खुद ही हमसे इतना लड़ते झगड़ते हैं, उन्हें बात करने की तमीज नहीं होती, वगैरह, वगैरह, वगैरह… शिकायतें मेरे सामने आ जाती है। उनकी भी कोई गलती नहीं क्योंकि वह भी एक हद तक सही कह रहे हैं। लेकिन जरा सोचिए कि आप दिन भर के थके, काम करके, अपने घर की ओर बढ़ने के लिए किसी रिक्शावाले का इंतजार कर रहे हैं। रिक्शा चल रही है। सड़क पर ट्रैफिक है। गाड़ियों से निकलते हुए धुएं का प्रदूषण, हॉर्न की कर्कश आवाज आपके दिमाग को झकझोड़ रही है। आप चाहते हैं कि किसी भी तरह, जल्द से जल्द आप अपने गंतव्य पर, अपने घर के पास पहुंच जाएँ। उस रिक्शा से निकले और सीधे घर के सोफे पर लेट जाएँ। लेकिन महाशय गौर कीजिए कि वह रिक्शा चालक अब भी उसी भीड़ भरी राह पर अपनी रिक्शा चला रहा होगा, अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए। कुछ पलों के लिए ही सही, आप वह शोर और धुआं झेल नहीं पाए, तो सोचिए कि वह रिक्शाचालक, जो ८ – १० -१२ घंटे इस युद्ध में काम कर रहा होता है, उस पर क्या बीत रही होगी?
इसी बात का एक दूसरा पहलू भी है, कि आप उस रिक्शा से उतरे, किराए के साथ साथ उस रिक्शा चालक को धन्यवाद दिया। इससे छोटे से धन्यवाद के कारण उसके सख्त से चेहरे पर मुस्कान तो खिलेगी ही, आपके भी ह्रदय में एक समाधान का पुष्प सुगन्धित होगा।
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लगभग पिछले ८ वर्षों से, जब भी किसी रिक्शा से उतरता हूँ, मैं यह प्रयोग करता आ रहा हूं। हर बार मुझे खुशी मिलती है। तो सोचता हूं कि यह खुशी सिर्फ मुझ तक ना सिमित रहकर और लोगों तक पहुँचे। हां मैं उन सभी से तो रोज नहीं मिल पाता, इसीलिए वर्ष में एक दिन उनके लिए तय किया गया है, वह है मकर संक्रांति का दिन।
मकर संक्रांति क्या है, और उस दिन का क्या महत्व है यह आप भलीभाँति जानते हैं और कई वर्षों से सुनते ही आए हैं, लेकिन मैं उस दिन क्या करता हूँ यह मैं आपको बताने का इच्छुक हूँ। मैं और मेरे कई मित्र और हम मित्रों का एक परिवार है अनाम प्रेम। हम हर मकर संक्रांति के दिन अपने क्षेत्र के आस-पास वाले किसी रिक्शा स्टैंड पर जाते हैं। वहाँ उनके कार्य उनके द्वारा दी जा रही सेवा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं, उन्हें धन्यवाद देते हैं, उन्हें तिल – गुड़ से बना का एक लड्डू देते हैं व मकर संक्रांति की शुभकामनाओं के साथ निस्वार्थ प्रेम का आदान-प्रदान करते हैं। साथ ही रिक्शा चालक की सीट के पीछे एक स्टीकर उनकी मर्जी से चिपकाते हैं जिसमें रिक्शा में बैठने वाले ग्राहक के लिए कुछ निर्देश दिए होते हैं – कि ग्राहक रिक्शा से उतरते वक्त रिक्शा चालक को धन्यवाद दे, उन्हें ‘आप’ से संबोधित करें, और कभी भी छुट्टे पैसों के लिए उन से झगड़ा ना करें.
चाहे रिक्शाचालाक हो या पीछे बैठनेवाला ग्राहक। हमारा समाज ऐसे ही कई सामान्य जनों से बना हुआ है और उनमें प्रेम सुवास सदा फैलती रहे यही हमारी कोशिश है। उस एक छोटे से धन्यवाद के कारण उस रिक्शा चालक का दिन तो बन ही जाएगा साथ ही ग्राहकों के प्रति जो बैर कहीं ना कहीं उनके भी मन में बन जाता है, वह भी मिट जाएगा। हाँ, कभी कोई खुश होगा, तो कभी कोई आप को नकार भी देगा, लेकिन एक सशक्त इमारत बनानी हो, तो उसे वक्त तो लगता है ही। हमारी प्रेम की नींव पक्की हो तो रोज एक एक ईंट लगाकर हम एक मज़बूत समाज का निर्माण कर सकते हैं, और भविष्य की पीढ़ियों को एक खुशहाल वातावरण में खिलने का मौक़ा मिलेगा।
इससे मेरा फायदा यह हो गया है कि अब जब भी मैं उन रिक्शाचालकों से मिलता हूँ, तो किसी अनजान इंसान नहीं बल्कि एक परिचित, एक दोस्त की तरह मिलता हूँ।