ना जाने किसके ख्वाब में,
तरसती हैं आँखें सोने को,
मंज़िल से प्यारी लगती हैं राहें,
भटकने को खोने को ।
क्यों अनजाने यार के,
दीदार में राही का मन है,
खुशियों की फिराक में,
मजबूर है रोने को ।
तस्वीर पिरोने लगे खयाल,
ज़ेहनों के बन्दे करे बवाल,
बेख़ौफ़ चले नाकामी से,
दरिया में आँग डुबोने को ।
ना जाने किसके ख्वाब में…।।