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ROYAL BATH OF MOBILE PHONE – शीर्षक देखकर आपको अटपटा ज़रूर लग रहा होगा, बिल्कुल वैसा ही जैसे कोई फ़िरंगी नागा बाबाओं की टोली में, भस्म व धुनी रमाए शामिल हो जाए और क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाए । किसी के आश्चर्य का कोई ठिकाना ही न होगा, और हुआ भी ऐसा ही । जिस – जिस व्यक्ति से हमने बात की, ठेट गाँव का वासी या कोई शहरी, कोई यात्री – सैलानी या कोई साधू – सन्यासी । हर किसी के माथे के टीके पर चार – पाँच क़तारों वाली शिकन और एक बड़ा सवाल उभर आता कि, “क्या ! मोबाइल फ़ोन भी धुवे जात है ?” मैंने बात आगे बढ़ाई | “हाँ, महाराज, वो तो सबसे गंदी वस्तुओं में से एक है जिसे हम कभी स्वच्छ नहीं करते और सबसे क़रीब उपयोग में भी लाते हैं, हमारे प्रियजनों से भी ज़्यादा करीब ।” वो मेरी तरफ़ पूरी आँख और कान खोलकर देखते, “क्या बात कर रहे हो?”
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“तो अब हमें क्या करना चाहिए ?” उस राजस्थानी ग्रामीण के चेहरे पर जिज्ञासा के भी रंग उभर आए थे । ऐसे अनेक लोग हमें क्षिप्रा नदी से सटी कुम्भ की उस व्यस्त सड़क पर चलते और फिर रुकते हुए मिले ।
मोबाइल फ़ोन की स्वच्छता उतनी ही ज़रूरी है जितनी हम अन्य उपयोग में आनेवाली वस्तुओं की सफ़ाई करते हैं । बात सिर्फ इतनी सी है कि भारत में हर उम्र, ५ साल के भोले भाले बच्चे से लेकर ९० साल के व्यक्ति तक के पास आज मोबाईल फोन उपलब्ध हो जाता है | इसकी संख्या आज भारत में लगभग ६८ करोड़ के ऊपर है और २०१९ तक यह संख्या करीब ८२ करोड़२ पार कर जाएगी | स्वच्छ भारत के अपने साकार करनेवाली सरकार तथा उनके बाबुओं के हाथ भी इन जन्तुजनित भ्रमणध्वनियों से सने हुए हैं | तो भला भारत कैसे स्वस्थ होगा |
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एक साधारण से लेकिन लाभकारी द्रव्य की सहायता से मुंबई के कुछ स्वयंसेवक (अनाम प्रेम)३ जुट गए लोगों के मोबाईल फोन निर्जन्तुकीकरण करने तथा उनके बीच जागरूकता फैलाने कि हमें कम से कम दिन में एक बार अपने फोन को एक स्वच्छ कपड़े से साफ़ करना चाहिए |
यह मोबाईल फोन बिल्कुल रोगों के कीटाणुओं से भरे बम की तरह है | डायरिया, मलेरिया, जोंडिस, सर्दी – खाँसी, बुखार व अन्य संसर्गजन्य रोगों के लिए तो जैसे यह उपजाऊ ज़मीन है, लेकिन यह बम कभी अचानक फटेगा फटेगा | दिन – ब – दिन धीरे – धीरे यह गन्दा होता जाएगा, उस पर कीटाणु अपनी बस्तियाँ बनाते जाएँगे और जब भी आप फोन से संपर्क साधेंगे तब मोबाईल फोन की सतह पर मौजूद, आँखों से दिखाई न देनेवाले वह सूक्ष्म जंतु आपके कान, नाक, मुँह से आपके शरीर के भीतर प्रवेश करेंगे और रोग फैलाएँगे |
ना कोई शुल्क, ना रजिस्ट्रेशन, ना कोई उत्पाद की खरीद फरोख्त और ना कोई अपेक्षा | मक्सद था सिर्फ सेवा भाव से कुम्भ यात्रियों, साधुओं तक पहुँचना और लोगों में जागरूकता फैलाना | लेकिन भागते हुए मन की तरह ही भागती हुई भीड़ की एक दिक्कत थी कि सैकड़ों के बाद कोई एक व्यक्ति हमारी बात पर गौर कर रहा था | पति अगर सुनता भी तो पत्नियाँ उन्हें खींच ले जाती | कोई साधू अगर ठहर जाता तो उसकी मंडली उसे खींच ले जाती | किसी ने अपनी गलत अंग्रेज़ी में कह दिया, आय हेव नोट इनट्रेस्टेड | वाह जी वाह, भलाई का तो सच में ज़माना ही ना रहा |
कईयों ने तो जी का जंजाल समझ इस मोबाईल को घर ही छोड़ आए, उन्होंने कहा कि कहीं काका का फोन, कहीं चाचा का फोन और ना जाने किस किस का फोन आ जाए, हम यहाँ शांत मन से कथा सुनने आए हैं, डुबकी लगाने आए हैं, कोई झंझट पालने थोड़े ही आए हैं | कुछ एक तो बड़े ध्यान से हमारी बात सुनते और परेशानी भरी भाव भंगिमा से कहते, “भैया हमारा तो मोबाईल ही कोई मार लिया |” अब भला उसके आगे क्या कहा जाता |
मोबाईल फोन के आलावा कई लोगों के चश्में भी साफ़ किए गए | तर्क सिर्फ इतना था कि चश्मों की सफाई से आँखों में तुरंत एक झलक नज़र आती कि हाँ कुछ तो साफ़ हुआ है, और जिनकी नज़रों का धुंधलका ठीक हो जाए फिर उससे तो कुछ कहने कि ज़रूरत नहीं पड़ती | फिर तो वो और ४ लोगों को ले आता |
किसी ने एक बात पूछी कि आपको भला इस कार्य से क्या मिलेगा ? जवाब था भारतीय संविधान का कलम ५१ (क) जिसमे भारतीयों के मूलभूत कर्तव्यों के बारे में कहा गया है, बस उसी को निभाते हुए देश प्रगति के अग्रसर होने का एक छोटा सा मौका प्राप्त होना सौभाग्य की बात थी, साथ ही संतुष्टि का अव्यक्त फल मिला सो अलग |
क्षिप्रा नदी के घाट पर शाही स्नान होने में अभी देर थी लेकिन, हज़ारों लोगों के मोबाईल फोन का शाही स्नान – ROYAL BATH OF MOBILE PHONE (निर्जन्तुकीकरण) ज़रूर हो चुका था |